खबर सतना जिले से आरोग्यधाम द्वारा दो दिवसीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन का आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने किया शुभारंभ देश के हर व्यक्ति को सस्ता इलाज सिर्फ आयुर्वेद ही प्रदान कर सकता है – मंत्री परमार जो वैद्य बिना बताये रोग पहचान ले, ईश्वर के समान है – अभय महाजन
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आरोग्यधाम द्वारा दो दिवसीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन का आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने किया शुभारंभ देश के हर व्यक्ति को सस्ता इलाज सिर्फ आयुर्वेद ही प्रदान कर सकता है – मंत्री परमार जो वैद्य बिना बताये रोग पहचान ले, ईश्वर के समान है – अभय महाजन

सतना 28 दिसंबर 2024/दीनदयाल शोध संस्थान के स्वास्थ्य प्रकल्प आरोग्यधाम के द्वारा शनिवार को उद्यमिता विद्यापीठ के लोहिया सभागार में परंपरागत वैद्यों के दो दिवसीय सम्मेलन का शुभारंभ अनुसुइया आश्रम के संत पवन बाबा, मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा, तकनीकी एवं आयुष मंत्री श्री इंदर सिंह परमार, प्रिज्म जॉनसन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक विजय अग्रवाल, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो0 भरत मिश्रा, सतना के जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एलके तिवारी, डॉ0 पूर्णिया विशेषज्ञ योग एवं रसाहार, दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव अभय महाजन सहित वैद्य लखन सिंह चौहान, बैद्य राजेंद्र पटेल द्वारा भगवान धनवंतरी की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के पश्चात कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ।
मध्यप्रदेश के आयुष मंत्री श्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि भारत की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली सबसे प्राचीन है जिससे सभी ने अपनी-अपनी चिकित्सा प्रणाली विकसित की है। प्रकृति के निकट रहने के कारण भारत सदैव स्वस्थ रहा है। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने देखा कि भारत की शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था समाज आधारित है, इसलिए यहां सभी शिक्षित और खुशहाल है। अंग्रेजों द्वारा ही सर्वेक्षण के दौरान यह पता लगाया गया कि उस समय शिक्षा एवं संस्कृति के आधार पर भारत की शिक्षा दर 80 से 92 प्रतिशत के आसपास थी। उस समय लगभग 7 लाख गुरुकुल संचालित हो रहे थे। तो फिर आज हमें क्यों बताया जाता है कि हमारे पूर्वज अशिक्षित थे, प्रकृति में पाई जाने वाली प्रत्येक वनस्पति हमारे लिए उपयोगी है। उसके प्रति विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए। । भारत की परंपरा ज्ञान है, दुनिया ने ज्ञान का पेटेंट कराया और पैसा कमाया। किंतु भारत देश ने ऐसा कभी नहीं किया। हमारा सदैव यह मानना रहा है कि ज्ञान पर सबका अधिकार है अर्थात वह सार्वभौमिक है। उसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के लिए होना चाहिए। देश के हर व्यक्ति को सस्ता इलाज सिर्फ आयुर्वेद ही प्रदान कर सकता है।
मंत्री श्री परमार ने कहा कि हमें सबसे पहले स्वयं पर विश्वास करना होगा तभी दूसरे हम पर विश्वास करेंगे। हर क्षेत्र में शोध की आवश्यकता है। जिससे भारत के विशाल ज्ञान को संपूर्ण विश्व को दिखाया जा सके। सम्पूर्ण शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा का समावेश करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। परंपरागत चिकित्सा पद्धति हमारी शान बनेगा, भारत के ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करना होगा। अपनी धारणा में परिवर्तन करना होगा, भ्रांतियां हटाना होगा। परंपरागत ज्ञान आजीविका का संसाधन कैसे बने इसके लिए शासन प्रयत्नशील है। जिस ज्ञान का हम सदियों से उपयोग करते आ रहे हैं उसका सदैव प्रवाह बना रहे इसके लिए भारत सरकार इस दिशा में कार्य कर रही हैं। यह पद्धति सर्व समाज के कल्याण हेतु कैसे उपयोग हो इस पर चिंतन करना होगा।
इस अवसर पर डीआरआई के शोध शाला प्रभारी डॉ मनोज त्रिपाठी ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परंपरागत वैद्यों द्वारा उपयोग किये जाने वाली पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से रोगों का उपचार करने वाले ज्ञान का डेटा-वेस तैयार करना है, जिससे उसका वैज्ञानिक विधि से परीक्षण एवं मानकीकरण का कार्य किया जा सके तथा इसकी वैश्विक स्वीकार्यता और नई दवाओं को विकसित करने के लिये एक मंच प्रदान करने की दिशा में प्रयास करना है। आरोग्यधाम के वैद्य राजेन्द्र पटेल ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में वैद्यो द्वारा पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के ज्ञान की निरंतरता को बनाये रखना है जो बीमारी जिस क्षेत्र में होती है उसका इलाज भी वहीं स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होता है हमे सिर्फ उसकी पहचान करने की आवश्यकता होती है। हमारा कार्य कम दवा, कम पैसे व कम समय में लोगों को स्वस्थ रखना है।
डॉ पूर्णिमा ने कहा कि हर व्यक्ति को हर मामले में स्वावलंबी बनाना नानाजी का लक्ष्य था। स्वस्थ व्यक्ति को सदैव स्वस्थ रखने एवं अस्वस्थ को शीघ्र स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना है। यहाँ हमारा परंपरागत ज्ञान ही उपयोगी है अर्थात जो निरोगी है वह कैसे निरोगी रहे इसके लिए हमें अपनी प्रतिदिन की कार्य योजना तैयार रखना चाहिए, तनाव रहित रहना चाहिए। ताजी जड़ी बूटियां से उपचार यथाशीघ्र संभव होता है। प्रबंध निदेशक विजय अग्रवाल ने कहा कि संस्थान द्वारा समाज के लिए किया जा रहे कार्य अनुकरणीय हैं। प्राकृतिक चीजों से इलाज स्वास्थ्य वर्धक एवं सर्वोत्तम है। पांच तत्वों से यह शरीर बना है और पंचतत्वों का समन्वय ही हमें निरोगी बनाए रखता है। हमें अपने परंपरागत ज्ञान का उपयोग करना चाहिए।
इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मार्गदर्शन करते हुए संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने कहा कि पृथ्वी पर जो भी पौधा है उसमें औषधीय गुण विद्यमान है, यदि वैद्यों को औषधीय पौधों की जानकारी है तो उसका सेवन कराकर आयुर्वेद के माध्यम से व्यक्ति को आजीवन स्वस्थ रखा जा सकता है। जो वैद्य बिना रोगी से पूछे उसकी नाड़ी देखकर रोग की पहचान कर ले, वह ईश्वर के समान है। हमारी वैदिक पद्धति में वैद्य वात, पित्त, कफ के आधार पर ही चिकित्सा करते थे एवं दवा के साथ ईश्वर से प्रार्थना कर दुवायें भी देते थे। दुवायें दवा से अधिक सामर्थ्यवान होती है।
कार्यक्रम का सफल संचालन मनोज सैनी प्रभारी उद्यमिता विद्यापीठ द्वारा किया गया। कार्यक्रम में दीनदयाल शोध संस्थान के उप महाप्रबंधक डॉ अनिल जायसवाल, आरोग्य धाम के ग्रामीण स्वास्थ्य विभाग के डॉ राजीव शुक्ला, समरजीत सिंह, दयालाल यादव डॉ, इं राजेश त्रिपाठी, समाजशिल्पी दम्पति प्रभारी डॉ अशोक पाण्डेय, राजेन्द्र सिंह,हरीराम सोनी, विनीत श्रीवास्तव प्रभारी दिशा दर्शन केंद्र, अनिल कुमार सिंह निदेशक जन शिक्षण संस्थान सहित संस्थान के कार्यकर्ता उपस्थित रहे। इसके अलावा प्रिज्म जॉनसन लिमिटेड से मनीष सिंह उपाध्यक्ष,मनीष प्रसाद, डॉ आरपी सिंह अतिरिक्त निदेशक उच्च शिक्षा रीवा, भरत व्यास ओएसडी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के 6 जिलों तथा उत्तरप्रदेश के 10 जिलों के प्रतिभागी प्रतिभाग कर रहे है।